लोगों की राय

बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - शैक्षिक चिन्तन : भारतीय दार्शनिक परम्परायें

एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - शैक्षिक चिन्तन : भारतीय दार्शनिक परम्परायें

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2685
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

एम ए सेमेस्टर-1 शिक्षाशास्त्र प्रथम प्रश्नपत्र - शैक्षिक चिन्तन : भारतीय दार्शनिक परम्परायें

 

रवीन्द्र नाथ टैगोर
(Rabindra Nath Tagore)

प्रश्न- टैगोर के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन कीजिए तथा शिक्षा के उद्देश्य, शिक्षण पद्धति, पाठ्यक्रम एवं शिक्षक के स्थान के सम्बन्ध में उनके विचारों को स्पष्ट कीजिए।

अथवा
रवीन्द्र नाथ टैगोर को प्रकृतिवादी विचारक के रूप में क्यों स्वीकार किया जाता है? उनके शिक्षा सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डालिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. टैगोर के शिक्षा दर्शन को स्पष्ट कीजिए।
2. टैगोर के अनुसार शिक्षा का अर्थ तथा उद्देश्य बताइए।
3. टैगोर द्वारा प्रतिपादित पाठ्यक्रम व शिक्षण विधि को संक्षेप में बताइए।
4. टैगोर ने शिक्षक के विषय में क्या विचार दिए हैं?
5. प्रकृतिवादी विचारक के रूप में टैगोर के शिक्षा-दर्शन का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।

उत्तर -

टैगोर का शिक्षा दर्शन
(Educational Philosophy of Tagore)

टैगोर भारत के महान समूतों में एक थे। उन्हें विज्ञानों, कला, साहित्य, संस्कृत का वृहत ज्ञान प्राप्त था। वे तत्त्कालीन शिक्षा के भी विरोधी थे क्योंकि उसका समाज की आवश्यकताओं से कोई सम्बन्ध नहीं था। वे शिक्षा में क्रान्तिकारी परिवर्तन चाहते थे, इसलिये उन्होंने शान्ति निकेतन नामक शैक्षिक संस्था की स्थापना कर अपने स्वप्नों को मूर्त रूप दिया। वे बालक को स्वतन्त्रता दिये जाने के पक्ष में थे तथा चाहते थे कि बालक प्रकृति तथा समाज दोनों से सीखे। वे विश्व बन्धुत्व में विश्वास करते थे तथा चाहते थे कि बालक में इसी दृष्टिकोण का विकास हो। उनकी इच्छा थी कि बालकों को वास्तविक जीवन की शिक्षा प्राप्त हो तथा उनका दृष्टिकोण संकीर्णता से ऊपर उठकर राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय भी बने।

शिक्षा दर्शन के आधारभूत सिद्धान्त
(Basic Principles of Educational Philosophy)

(1) शिक्षा का सामुदायिक जीवन से प्रगाढ़ सम्बन्ध होना चाहिये।
(2) शिक्षा को सजीव एवं गतिशील होना चाहिये।
(3) बालक की शिक्षा का माध्यम मातृभाषा होनी चाहिये।
(4) बालकों की शिक्षा नगर से दूर प्रकृति के प्रांगण में होनी चाहिये।
(5) प्रकृति के सम्पर्क में रहने के साथ-साथ बालक को सामाजिक सम्पर्क स्थापित करने के अधिक-से-अधिक अवसर दिये जाने चाहिये जिससे इनमें स्वशासन तथा समाज सेवा के भाव विकसित हो सकें
(6) बालकों में संगीत, अभिनय तथा चित्रकला की योग्यताओं का विकास किया जाना चाहिए।
(7) उन्हें भारतीय समाज एवं भारतीय संस्कृति का स्पष्ट ज्ञान कराया जाना चाहिए।
(8) शिक्षा बालक की जन्मजात शक्तियों के विकास करके उसके व्यक्तित्त्व का सर्वांगीण और सामंजस्यपूर्ण विकास करे।
(9) जनसाधारण को शिक्षा देने हेतु देशी प्राथमिक पाठशालाओं को पुनर्जीवित किया जाना चाहिये।
(10) शिक्षा बालक को एक पूर्ण मानव के रूप में विकसित करे।
(11) शिक्षा प्राप्त करते समय बालक को स्वतन्त्रता प्रदान की जानी चाहिये।
(12) रचनात्मक प्रवृत्तियों के विकास हेतु बालक को आत्माभिव्यक्ति के अवसर प्रदान किये जाने चाहिये।

शिक्षा का अर्थ
(Meaning of Education)

टैगोर ने 'शिक्षा' शब्द का व्यापक अर्थ में प्रयोग किया है। उनके शब्दों में, "सर्वोच्च शिक्षा वही है जो सम्पूर्ण सृष्टि से हमारे जीवन का सामंजस्य स्थापित करती है। "

शिक्षा के उद्देश्य
(Aims of Education)

टैगोर द्वारा निर्धारित शिक्षा के मुख्य उद्देश्य निम्नलिखित हैं -

(1) प्रकृति के सानिध्य में रखकर बालक के शारीरिक विकास पर सर्वाधिक बल देना।
(2) बालक का मानसिक विकास करना जिससे वे नये-नये उपयोगी तथ्यों की खोज कर सकें उनके अनुसार, मानसिक विकास बालक द्वारा जीवन की वास्तविक क्रियाओं में भाग लेने से ही हो सकता है।
(3) बालक का वैयक्तिक तथा सामाजिक विकास करना।
(4) बालकों को भारतीय संस्कृति से परिचित कराना।
(5) उनमें राष्ट्रीय एकता के भावों को दृढ़ करने के साथ-साथ अन्तर्राष्ट्रीय बन्धुत्व की भावना को विकसित करना।
(6) बालक को एक श्रेष्ठ मानव बनाना जिससे वह आगे चलकर मानव-मानव के बीच कोई विभेद न करे।
(7) बालक को व्यावसायिक शिक्षा भी प्रदान करना।
(8) बालक में आध्यात्मिक गुणों का विकास करना जिससे वे आगे चलकर विश्व के सभी प्राणियों में एक आत्मा के दर्शन करने लगे।

पाठ्यक्रम
(Curriculum)

टैगोर के अनुसार, - शिक्षा का मुख्य उद्देश्य हैपूर्ण जीवन की प्राप्ति हेतु मनुष्य का पूर्ण विकास करना। अतः इस उद्देश्य की प्राप्ति हेतु उन्होंने पाठ्यक्रम में विभिन्न प्रकार के विषय व क्रियाओं को सम्मिलित किया। उनके अनुसार, पाठ्यक्रम के कुछ मुख्य विषय व क्रियायें इस प्रकार हैं -

(i) विषय - इतिहास, भूगोल, साहित्य, विज्ञान, प्रकृति अध्ययन आदि।
(ii) क्रियायें - नाटक, भ्रमण, बागवानी, क्षेत्रीय अध्ययन, प्रयोगशाला कार्य, ड्राइंग, मौलिक रचना, अजायबघर के लिये विभिन्न वस्तुओं का संग्रह आदि। (iii) अतिरिक्त पाठ्यक्रम क्रियायें - खेल-कूद, समाज-सेवा, छात्रस्वशासन आदि।

 

शिक्षण-पद्धति
(Method of Teaching)

टैगोर की शिक्षण विधि निम्नलिखित सिद्धान्तों पर आधारित है -

(1) वाद-विवाद और प्रश्नोत्तर प्रणाली का प्रयोग करना।
(2) बालकों को वास्तविक परिस्थितियों में रखकर स्वयं करके, स्वयं के अनुभवों एवं स्वयं के निर्णयों द्वारा सीखने के लिये प्रेरित करना।
(3) स्वयं टैगोर के शब्दों में, भ्रमण के समय पढ़ाना शिक्षण की सर्वोत्तम विधि है। "
(4) शिक्षण विधि को बालक की स्वाभाविक रुचियों एवं आवेगों पर आधारित करना।
(5) शिक्षण विधि के अन्तर्गत नृत्य, अभिनय, किसी दस्तकारी आदि को स्थान देकर शारीरिक क्रिया को महत्त्व देना तथा इस प्रकार 'क्रिया विधि' का प्रयोग करना।

अनुशासन (Discipline)

टैगोर के अनुसार - , अनुशासन एक आन्तरिक भावना है। दण्ड-व्यवस्था के वे विरोधी थे। उनकी मान्यता थी कि यदि शिक्षक ज्ञानी है, चरित्रवान है तथा उनके विद्यार्थियों के साथ व्यवहार प्रेम और सहानुभूतिपूर्ण है, तो बालक भी स्वयंमेव ही अनुशासन का पालन करेंगे। वे स्वशासन की भावना के विकास हेतु खेल-कूद, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन को आवश्यक मानते थे।

शिक्षक
(Teacher)

टैगोर के अनुसार, - शिक्षक के निम्नांकित कार्य हैं -

(1) ऐसे वातावरण का निर्माण करना जिसमें बालक स्व अर्जित अनुभव द्वारा सरलतापूर्वक सीख सके।
(2) बालक की रचनात्मक शक्तियों को विकसित करने का प्रयत्न करना।
(3) व्यक्तिगत भिन्नता के आधार पर बालकों के लिये शिक्षा की उचित व्यवस्था करना।
(4) आदर्श आचरण का उदाहरण प्रस्तुत करना।
(5) बालकों के साथ प्रेम और सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करना।

टैगोर के प्रकृतिवादी विचारक के रूप में मूल्यांकन
(Evaluation of Tagore Educational Philosopy as a Naturalistic Thinker)

टैगोर के अनुसार, - शिक्षा को शहर से दूर प्रकृति के सुरम्य वातावरण में प्रदान करना चाहिए तथा वे यह भी चाहते थे कि शिक्षा मानवीय आवश्यकताओं के अनुसार हो। बालक आगे चलकर एक श्रेष्ठ मानव बनें, वे अपने निर्णय स्वयं लें तथा उनका दृष्टिकोण विशाल हो। उन्होंने शिक्षा में क्रियाओं एवं अनुभवों के समावेश पर बल दिया तथा निष्क्रिय एवं पुस्तकीय शिक्षा का विरोध किया।

एक शिक्षाशास्त्री के रूप में, शिक्षा के पुनर्निर्माण का मार्ग प्रशस्त करने वाले के रूप में टैगोर की देन अमूल्य है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रश्न- दर्शन का क्या अर्थ है? इसकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  2. प्रश्न- दर्शन की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- दर्शन के सम्बन्ध में शिक्षा के उद्देश्य बताइये।
  4. प्रश्न- शिक्षा दर्शन का क्या अर्थ है तथा परिभाषा भी निर्धारित कीजिए। शिक्षा दर्शन के क्षेत्र को स्पष्ट कीजिए।
  5. प्रश्न- शिक्षा दर्शन की परिभाषाएँ स्पष्ट कीजिए।
  6. प्रश्न- शिक्षा दर्शन के क्षेत्र को स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- दर्शन के अध्ययन क्षेत्र एवं विषय-वस्तु का वर्णन कीजिए। दर्शन और शिक्षा में क्या सम्बन्ध है?
  8. प्रश्न- भारतीय दर्शन के आधारभूत तत्व कौन कौन से हैं? विवेचना कीजिए।
  9. प्रश्न- भारतीय दर्शन जगत में षडदर्शन का क्या महत्त्व है?
  10. प्रश्न- सांख्य और योग दर्शन के शिक्षण विधि संबंधी विचारों की तुलना कीजिए।
  11. प्रश्न- भारतीय दर्शन में जैन व चार्वाक का उल्लेख कीजिए।
  12. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के मुख्य तत्वों पर प्रकाश डालिए।
  13. प्रश्न- धर्म तथा विज्ञान की दृष्टि से शिक्षा तथा दर्शन के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।उप
  14. प्रश्न- विज्ञान की शिक्षा तथा दर्शन से सम्बद्धता स्पष्ट कीजिए।
  15. प्रश्न- शिक्षा दर्शन से क्या अभिप्राय है? इसके स्वरूप का उल्लेख कीजिए।
  16. प्रश्न- शिक्षा दर्शन के स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
  17. प्रश्न- "शिक्षा सम्बन्धी समस्त प्रश्न अन्ततः दर्शन से सम्बन्धित हैं।" विवेचना कीजिए।
  18. प्रश्न- दर्शन तथा शिक्षण पद्धति के सम्बन्ध की विवेचना कीजिए।
  19. प्रश्न- आधुनिक भारत में शिक्षा के उद्देश्य क्या होने चाहिए?
  20. प्रश्न- सामाजिक विज्ञान के रूप में शिक्षा की विवेचना कीजिए।
  21. प्रश्न- दर्शनशास्त्र में अनुशासन का क्या महत्त्व है?
  22. प्रश्न- दर्शन शिक्षा पर किस प्रकार आश्रित है?
  23. प्रश्न- शिक्षा दर्शन पर किस प्रकार निर्भर करती है?
  24. प्रश्न- शिक्षा दर्शन के प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए।‌
  25. प्रश्न- शिक्षा-दर्शन के अध्ययन की आवश्यकता एवं महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
  26. प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान के अर्थ एवं परिभाषा की विवेचना कीजिए। शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र की भी विवेचना कीजिए।
  27. प्रश्न- शिक्षा एवं मनोविज्ञान में क्या सम्बन्ध है?
  28. प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र की विवेचना कीजिए।
  29. प्रश्न- "शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षक के लिए कुंजी है, जिससे वह प्रत्येक जिज्ञासा एवं समस्या का उचित समाधान प्रस्तुत करता है।' विवेचना कीजिए।
  30. प्रश्न- वर्तमान शिक्षा की मनोवैज्ञानिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  31. प्रश्न- शिक्षा के व्यापक एवं संकुचित अर्थ बताइये।
  32. प्रश्न- शिक्षा मनोविज्ञान का महत्व बताइये।
  33. प्रश्न- शिक्षक प्रशिक्षण में शिक्षा मनोविज्ञान की सम्बद्धता एवं उपयोगिता का वर्णन कीजिए।
  34. प्रश्न- मनोविज्ञान शिक्षा को विभिन्न समस्याओं का समाधान करने में किस प्रकार सहायता देता है?
  35. प्रश्न- सांख्य दर्शन के शैक्षिक अर्थ क्या हैं? सविस्तार वर्णन कीजिए।
  36. प्रश्न- सांख्य दर्शन में पाठ्यक्रम की अवधारणा को शैक्षिक परिप्रेक्ष्य में समझाइये।
  37. प्रश्न- सांख्य दर्शन के शैक्षिक परिप्रेक्ष्य में शिक्षण विधियों का वर्णन करो।
  38. प्रश्न- सांख्य दर्शन के शैक्षिक परिप्रेक्ष्य में अनुशासन, शिक्षण, छात्र व स्कूल का उल्लेख कीजिए।
  39. प्रश्न- सांख्य दर्शन के मूल सिद्धान्तों का क्या प्रभाव शिक्षा पद्धति पर हुआ है? व्याख्या कीजिए।
  40. प्रश्न- वेदान्त काल की शिक्षा के स्वरूप को उल्लेखित करते हुए विवेचना कीजिए।
  41. प्रश्न- वेदान्त दर्शन के शैक्षिक स्वरूप की व्याख्या कीजिए।
  42. प्रश्न- उपनिषद् काल की शिक्षा की वर्तमान समय में प्रासंगिकता की विवेचना कीजिए।
  43. प्रश्न- वेदान्त दर्शन की तत्व मीमांसा, ज्ञान मीमांसा तथा मूल्य एवं आचार मीमांसा का वर्णन कीजिए।
  44. प्रश्न- वेदान्त दर्शन की मुख्य विशेषताओं की विवेचना कीजिए। वेदान्त दर्शन के अनुसार शिक्षा के उद्देश्यों व पाठ्यक्रम की व्याख्या कीजिए।
  45. प्रश्न- न्याय दर्शन में ईश्वर विचार तथा ईश्वर के अस्तित्व के लिए प्रमाण बताइये।
  46. प्रश्न- न्याय दर्शन में ईश्वर के अस्तित्व के प्रमाण लिखिए।
  47. प्रश्न- न्याय दर्शन की भूमिका प्रस्तुत कीजिए तथा न्यायशास्त्र का महत्त्व बताइये। न्यायशास्त्र के अन्तर्गत प्रमाण शास्त्र का वर्णन कीजिए।
  48. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में पदार्थों की व्याख्या कीजिये।
  49. प्रश्न- वैशेषिक द्रव्यों की व्याख्या कीजिए।
  50. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में कितने गुण होते हैं?
  51. प्रश्न- कर्म किसे कहते हैं? व्याख्या कीजिए।
  52. प्रश्न- सामान्य की व्याख्या कीजिए।
  53. प्रश्न- विशेष किसे कहते हैं? लिखिए।
  54. प्रश्न- समवाय किसे कहते हैं?
  55. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन में अभाव क्या है?
  56. प्रश्न- सांख्य दर्शन के मूल सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
  57. प्रश्न- सांख्य दर्शन के गुण-दोष लिखिए।
  58. प्रश्न- सांख्य दर्शन के बारे में आप क्या जानते हैं?
  59. प्रश्न- सांख्य दर्शन के प्रमुख बिन्दु क्या हैं?
  60. प्रश्न- न्याय दर्शन से आप क्या समझते हैं?
  61. प्रश्न- योग दर्शन के बारे में अपने विचार प्रकट कीजिए।
  62. प्रश्न- वेदान्त दर्शन में ईश्वर अर्थात् ब्रह्म के स्वरूप का वर्णन कीजिए।
  63. प्रश्न- अद्वैत वेदान्त के तीन प्रमुख सिद्धान्तों को बताइये।
  64. प्रश्न- उपनिषदों के बारे में बताइये।
  65. प्रश्न- उपनिषदों अर्थात् वेदान्त के अनुसार विद्या, अविद्या तथा परमतत्व का उल्लेख कीजिए।
  66. प्रश्न- शिक्षा में वेदान्त का महत्व बताइए।
  67. प्रश्न- बौद्ध धर्म के प्रमुख दार्शनिक सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  68. प्रश्न- बौद्ध धर्म के क्षणिकवाद तथा अनात्मवाद दार्शनिक सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं?
  69. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में पंच स्कन्ध तथा कर्मवाद सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए।
  70. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के परिप्रेक्ष्य में बोधिसत्व से आप क्या समझते हैं?
  71. प्रश्न- बौद्ध दर्शन माध्यमिक शून्यवाद के सिद्धान्त से आप क्या समझते हैं?
  72. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में निहित मूल शैक्षिक विचारों का वर्णन कीजिए।
  73. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में प्रतीत्य समुत्पाद, कर्मवाद तथा बोधिसत्व के सिद्धान्तों के शैक्षिक विचारों का वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के शैक्षिक स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
  75. प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम एवं अनुशासन पर महात्मा बुद्ध के विचारों की विवेचना कीजिए।
  76. प्रश्न- बौद्ध दर्शन के अष्टांगिक मार्ग के शैक्षिक निहितार्थ का उल्लेख कीजिए।
  77. प्रश्न- बौद्ध धर्म के हीनयान तथा महायान सम्प्रदाय के मूलभूत भेद क्या हैं? उल्लेख कीजिए।
  78. प्रश्न- बौद्ध दर्शन में चार आर्य सत्यों का उल्लेख करते हुए उनके शैक्षिक निहितार्थ का विश्लेषण कीजिए?
  79. प्रश्न- जैन दर्शन से क्या तात्पर्य है? जैन दर्शन के मूल सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- जैन दर्शन के अनुसार 'द्रव्य' संप्रत्यय की विस्तृत विवेचना कीजिए।
  81. प्रश्न- जैन दर्शन द्वारा प्रतिपादित शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यक्रम और शिक्षण विधियों का उल्लेख कीजिए।
  82. प्रश्न- इस्लाम दर्शन का परिचय दीजिए। इस्लाम दर्शन के शिक्षा के अर्थ को स्पष्ट करते हुए इसमें निहित शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यक्रम तथा शिक्षण विधियों का उल्लेख कीजिए।
  83. प्रश्न- इस्लाम धर्म एवं दर्शन की प्रमुख विशेषताएँ क्या है? स्पष्ट कीजिए।
  84. प्रश्न- जैन दर्शन का मूल्यांकन कीजिए।
  85. प्रश्न- मूल्य निर्माण में जैन दर्शन का क्या योगदान है?
  86. प्रश्न- अनेकान्तवाद (स्याद्वाद) को समझाइए।
  87. प्रश्न- जैन दर्शन और छात्र पर टिप्पणी लिखिए।
  88. प्रश्न- इस्लाम दर्शन के अनुसार शिक्षा व शिक्षार्थी के विषय में बताइए।
  89. प्रश्न- संसार को इस्लाम धर्म की देन का उल्लेख कीजिए।
  90. प्रश्न- गीता में नीतिशास्त्र की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  91. प्रश्न- गीता में भक्ति मार्ग की महत्ता क्या है?
  92. प्रश्न- श्रीमद्भगवत गीता के विषय विस्तार को संक्षेप में समझाइये।
  93. प्रश्न- गीता के अनुसार कर्म मार्ग क्या है?
  94. प्रश्न- गीता दर्शन में शिक्षा का क्या अर्थ है?
  95. प्रश्न- गीता दर्शन के अन्तर्गत शिक्षा के सिद्धान्तों को बताइए।
  96. प्रश्न- गीता दर्शन में शिक्षालयों का स्वरूप क्या था?
  97. प्रश्न- गीता दर्शन तथा मूल्य मीमांसा को संक्षेप में बताइए।
  98. प्रश्न- गीता में गुरू-शिष्य के सम्बन्ध कैसे थे?
  99. प्रश्न- वैदिक परम्परा व उपनिषदों के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य लिखिए।
  100. प्रश्न- नास्तिक सम्प्रदायों का शैक्षिक अभ्यास में योगदान बताइए।
  101. प्रश्न- आस्तिक एवं नास्तिक पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  102. प्रश्न- रूढ़िवाद किसे कहते हैं? रूढ़िवाद की परिभाषा बताइए।
  103. प्रश्न- भारतीय वेद के सामान्य सिद्धान्त बताइए।
  104. प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
  105. प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
  106. प्रश्न- भारतीय दर्शन के आस्तिक तथा नास्तिक सम्प्रदायों की व्याख्या कीजिये।
  107. प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यक्रम और शिक्षण विधि पर श्री अरविन्द घोष के विचारों की विवेचना कीजिए।
  108. प्रश्न- श्री अरविन्द अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षा केन्द्र का वर्णन कीजिए।
  109. प्रश्न- शिक्षा के क्षेत्र में अरविन्द घोष के योगदान का वर्णन कीजिए।
  110. प्रश्न- श्री अरविन्द के किन शैक्षिक विचारों ने आपको अपेक्षाकृत अधिक प्रभावित किया और क्यों?
  111. प्रश्न- श्री अरविन्द के शैक्षिक विचारों का वर्णन कीजिए।
  112. प्रश्न- टैगोर के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन कीजिए तथा शिक्षा के उद्देश्य, शिक्षण पद्धति, पाठ्यक्रम एवं शिक्षक के स्थान के सम्बन्ध में उनके विचारों को स्पष्ट कीजिए।
  113. प्रश्न- टैगोर का शिक्षा में योगदान बताइए।
  114. प्रश्न- विश्व भारती का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
  115. प्रश्न- शान्ति निकेतन की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं? आप कैसे कह सकते हैं कि यह शिक्षा में एक प्रयोग है?
  116. प्रश्न- टैगोर का मानवतावादी प्रकृतिवाद पर टिप्पणी लिखिए।
  117. प्रश्न- डॉ. राधाकृष्णन के बारे में प्रकाश डालिए।
  118. प्रश्न- शिक्षा के अर्थ, उद्देश्य तथा शिक्षण विधि सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डालते हुए गाँधी जी के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन कीजिए।
  119. प्रश्न- गाँधी जी के शिक्षा दर्शन तथा शिक्षा की अवधारणा के विचारों को स्पष्ट कीजिए। उनके शैक्षिक सिद्धान्त वर्तमान भारत की प्रमुख समस्याओं का समाधान कहाँ तक कर सकते हैं?
  120. प्रश्न- बुनियादी शिक्षा क्या है?
  121. प्रश्न- बुनियादी शिक्षा का वर्तमान सन्दर्भ में महत्व बताइए।
  122. प्रश्न- "बुनियादी शिक्षा महात्मा गाँधी की महानतम् देन है"। समीक्षा कीजिए।
  123. प्रश्न- गाँधी जी की शिक्षा की परिभाषा की विवेचना कीजिए।
  124. प्रश्न- शारीरिक श्रम का क्या महत्त्व है?
  125. प्रश्न- गाँधी जी की शिल्प आधारित शिक्षा क्या है? शिल्प शिक्षा की आवश्यकता बताते हुए.इसकी वर्तमान प्रासंगिकता बताइए।
  126. प्रश्न- वर्धा शिक्षा योजना पर टिप्पणी लिखिए।
  127. प्रश्न- महर्षि दयानन्द के जीवन एवं उनके योगदान को समझाइए।
  128. प्रश्न- दयानन्द के शिक्षा दर्शन के विषय में सविस्तार लिखिए।
  129. प्रश्न- स्वामी दयानन्द का शिक्षा में योगदान बताइए।
  130. प्रश्न- शिक्षा का अर्थ एवं उद्देश्यों, पाठ्यक्रम, शिक्षण-विधि, शिक्षक का स्थान, शिक्षार्थी को स्पष्ट करते हुए जे. कृष्णामूर्ति के शैक्षिक विचारों की व्याख्या कीजिए।
  131. प्रश्न- जे. कृष्णमूर्ति के जीवन दर्शन पर टिप्पणी लिखिए।
  132. प्रश्न- जे. कृष्णामूर्ति के विद्यालय की संकल्पना पर प्रकाश डालिए।
  133. प्रश्न- मानवाधिकार आयोग के सार्वभौमिक घोषणा पत्र में मानव मूल्यों के सन्दर्भ में क्या घोषणाएँ की गई।
  134. प्रश्न- मूल्यों के संवैधानिक स्रोतों का उल्लेख कीजिए।
  135. प्रश्न- राष्ट्रीय मूल्य की अवधारणा क्या है?
  136. प्रश्न- जनतंत्र का अर्थ स्पष्ट कीजिए जनतन्त्रीय शिक्षा का वर्णन कीजिए?
  137. प्रश्न- लोकतन्त्र में शिक्षा के उद्देश्य क्या हैं?
  138. प्रश्न- आधुनिकीकरण के गुण-दोषों की व्याख्या करते हुए इसमें शिक्षा की भूमिका का भी वर्णन कीजिए।
  139. प्रश्न- आधुनिकीकरण का अर्थ एवं परिभाषएँ बताइए।
  140. प्रश्न- आधुनिकीकरण की विशेषताएँ बताइये।
  141. प्रश्न- आधुनिकीकरण के लक्षण बताइये।
  142. प्रश्न- आधुनिकीकरण में शिक्षा की भूमिका बताइये।
  143. प्रश्न- राष्ट्रीय एकता में शिक्षा की भूमिका क्या है? विवेचना कीजिए।
  144. प्रश्न- शैक्षिक अवसरों में समानता से आप क्या समझते हैं?
  145. प्रश्न- लोकतन्त्रीय शिक्षा के पाठ्यक्रम और शिक्षण विधियों की विवेचना कीजिए।
  146. प्रश्न- जनतन्त्रीय शिक्षा के उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
  147. प्रश्न- शिक्षा में लोकतंत्रीय धारणा से आप क्या समझते हैं?
  148. प्रश्न- राष्ट्रीय एकता की समस्या पर प्रकाश डालिए?
  149. प्रश्न- भारत में शैक्षिक अवसरों की असमानता के विभिन्न स्वरूपों पर प्रकाश डालिए।
  150. प्रश्न- प्रजातन्त्र में शिक्षा की भूमिका बताइये।
  151. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में शिक्षा की भूमिका का मूल्यांकन कीजिए।
  152. प्रश्न- लोकतन्त्र में शिक्षा के उद्देश्य बताइये।
  153. प्रश्न- जनतंत्र के मूल सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  154. प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन से आप क्या समझते हैं? शिक्षा सामाजिक परिवर्तन किस प्रकार लाती है?

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book